बकरीद की कुर्बानी का रहस्य — क्यों मनाई जाती है ईद-उल-अजहा?

अजमल शाह
अजमल शाह

बहुत समय पहले की बात है। एक बहुत अच्छे और नेक इंसान थे जिनका नाम था हज़रत इब्राहीम। वे अल्लाह (ईश्वर) से बहुत प्यार करते थे और हमेशा उनकी बात मानते थे।

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एक दिन अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम को एक सपना दिखाया — उस सपने में अल्लाह ने उनसे कहा कि वे अपनी सबसे प्यारी चीज़ की कुर्बानी (बलिदान) दें।

हज़रत इब्राहीम के लिए सबसे प्यारे उनके बेटे हज़रत इस्माईल थे। उन्होंने अपने बेटे से बात की, और बेटे ने भी कहा, “अगर अल्लाह का हुक्म है, तो मैं तैयार हूं।”

जब हज़रत इब्राहीम अपने बेटे को कुर्बान करने जा रहे थे, तभी अल्लाह ने उन्हें रोक दिया! यह सिर्फ एक परीक्षा थी। अल्लाह ने देखा कि वे कितने अच्छे और वफादार हैं। और फिर अल्लाह ने उनकी जगह एक दुम्बा (एक जानवर) भेजा, जिसे कुर्बानी में दिया गया।

बकरीद पर क्या करते हैं?

  • लोग नए कपड़े पहनते हैं और सुबह ईद की नमाज पढ़ते हैं।

  • फिर वे एक जानवर (जैसे बकरा, भेड़ या ऊँट) की कुर्बानी देते हैं।

  • उस मांस को तीन हिस्सों में बाँटते हैं:

    1. गरीबों और ज़रूरतमंदों को,

    2. रिश्तेदारों और दोस्तों को,

    3. खुद के लिए।

  • लोग एक-दूसरे को गले मिलकर “ईद मुबारक!” कहते हैं।

  • स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं, जैसे सेवइयां, बिरयानी, कबाब वगैरह।

बकरीद हमें क्या सिखाती है?

  • प्यार और मदद करना,

  • त्याग और बलिदान,

  • और अल्लाह की बात मानना

बकरीद आई खुशियाँ लायी

बकरीद आई, बकरीद आई,
खुशियों की सौगातें लाई।
नए कपड़े, मीठा खाना,
सबको गले लगाना है माना।

सुबह-सुबह उठकर जाना,
नमाज में सिर झुकाना।
अल्लाह से दुआ हम माँगें,
सबका भला हो, दिल से चाहें।

बकरा, ऊँट या कोई जानवर,
कुर्बानी का होता है ये अवसर।
सीखा हमें जो इब्राहीम ने,
भरोसा रखना हम भी सीखें।

गरीबों को मांस बाँटना,
प्यार से सबको साथ खाना।
ईद की ये प्यारी कहानी,
सिखाए हमें नेकी की निशानी।

चलो मिलकर खुशियाँ बाँटें,
दिल से दिल का रिश्ता काटें।
बकरीद का त्योहार मनाएँ,
सबको गले लगाएँ!

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